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दूर हो दूर / रुद्र मुहम्मद शहीदुल्लाह / सुलोचना वर्मा

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नहीं छू पाया तुम्हें, तुम्हारी तुम्हें
उष्ण देह गूँथ-गूँथ कर इकठ्ठा किया सुख
परस्पर खनन कर-करके ढूँढ़ ली घनिष्ठता,
तुम्हारे तुम को मैं छू नहीं पाया।

जिस प्रकार सीप खोलकर मोती ढूँढ़ते हैं लोग
मुझे खोलते ही तुमने पाई बीमारी
पाई तुमने किनाराहीन आग की नदी।

शरीर के तीव्रतम गहरे उल्लास में
तुम्हारी आँखों की भाषा पढ़ी है सविस्मय
तुम्हारे तुम को मैं छू नहीं पाया।

जीवन के ऊपर रखा विश्वास का हाथ
कब शिथिल होकर तूफ़ान में उड़ गया पत्ते-सा।
कब हृदय फेंककर हृदयपिण्ड को छूकर
बैठा हूँ उदासीन आनन्द के मेले में

नहीं छू पाया तुम्हें, मेरी तुम्हें,
पागल गिरहबाज कबूतर जैसे नीली पृष्ठभूमि
तहस-नहस कर गया शान्त आकाश का।
अविराम बारिश में मैंने भिगोया है हिया

तुम्हारे तुम को मैं नहीं छू पाया।

मूल बांग्ला से सुलोचना वर्मा द्वारा अनूदित