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दूसरा पहले से हर बात में बढ़कर निकला / कांतिमोहन 'सोज़'

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दूसरा पहले से हर बात में बढ़कर निकला।
हमने तकिया<ref>भरोसा</ref> किया जिस पर वो सितमगर निकला ।।

मैं था मम्नून<ref>शुक्रगुज़ार</ref> बिलाख़िर कोई ग़मख़्वार मिला
ऐन उस लम्हा बग़ल से तेरा ख़ंजर निकला ।

उम्र भर अपनी अक़ीदत का हमें पास<ref>लिहाज़</ref> रहा
वर्ना प्यासे के लिए तू भी समुन्दर निकला ।

दिल कोई जिंस<ref>चीज़</ref> नहीं था यही दावा सबका
जिससे सौदा किया दिल का वही ताजिर<ref>सौदागर</ref> निकला ।

हम समझते थे हमें जीने का हक़ है लेकिन
क़त्ल का हक़ भी उस आईन<ref>विधान</ref> के अन्दर निकला ।

कल तो एक बाप को ये फ़ातेहा पढ़ते पाया
तू मेरे लाल मुक़द्दर का सिकन्दर निकला ।

सोज़ दिन-रात परीशान है तब से अब तक
जब से उस बुत की ज़बां से भी मुकर्रर<ref>एक बार और</ref> निकला ।।

शब्दार्थ
<references/>