भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दूसरे / सुदर्शन प्रियदर्शिनी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


दूसरों को
चुभे कांटे
दूसरे चलें
आग के दरिया पर
दूसरे जूझें
आँधियों के
जंगलों से
दूसरें ढोयें
दूसरों का मलाल
झेलें राजनीती की
चरखड़ी पे चढ़ कर
तलवारों का वार
सब ठीक है ...
क्यों कि
यह मेरी
चार दीवारी
से बाहर है
में सुरक्षित हूँ ...