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दूसरों से जनाब ज़्यादा हैं / श्याम कश्यप बेचैन
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दूसरों से जनाब ज़्यादा हैं
आदमी कम, क़िताब ज़्यादा हैं
सुन न पाए, कि बोल देते हैं
आप हाज़िरजवाब ज़्यादा हैं
उनको आता है दंद-फंद बहुत
हमसे वो क़ामयाब ज़्यादा हैं
वो हक़ीक़त से आँख मूँदे हैं
उनकी आँखों में ख़्वाब ज़्यादा हैं
आप नौका-विहार मत करिए
ठूँठवाले तालाब ज़्यादा हैं
जब हम अच्छों को गिन नहीं पाए
कैसे कह दें, ख़राब ज़्यादा हैं