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दृश्य: वर्षा / शैलजा सक्सेना

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आज धूप की मुठ्ठी बाँधे
सूरज बादल पीछे दुबका,
और हवा की बन आई है
घर-घर जा कर चुगली करती।
 
सूरज व्याकुल देख रहा है
पर बादल का परदा भारी,
उस पर बरखा बरस-बरस कर,
तड़-तड़ धरती से बतियाती।
 
रामू झुग्गी भीतर भीगे,
मुनिया थर-थर काँप रही है
ताप चढ़ा मुनिया की माँ को
चूल्हा तक जलना भारी है।
 
मुन्ना बुड़-बुड़ बोल रहा है
सूरज ताप दिखाने आओ,
आसमान में जगमग हो कर,
तकिया-बिस्तर आन सुखाओ॥