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दृश्य / अनिता मंडा
Kavita Kosh से
किसी अनजान क्षण में
खिड़की के आधे खुले पल्ले से
आसमान समाता है उसकी आँखों में
उतरती हैं उड़ते पंछियों की टोलियाँ
हृदय के आकाश पर
विचरती है उन्मुक्त हवा
उसके दायें-बायें से
आँखें मूँदकर एक लम्बी साँस में
समो लेना चाहती है सारा दृश्य भीतर
आँखें खोलते ही दीखते हैं
पतंगों के दाँव-पेच
डोर पर हाथों का नियंत्रण और
डोर से कटने के बाद
आसमान में तैरते-तैरते
कहीं दरख़्तों पर
अटक जाती पतंगें
हवा को फड़फड़ाकर सुनाती
अपनी कहानी