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दृश्य / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
Kavita Kosh से
हम भरि मोन निहारय चाहय छी
स्पर्श करऽ चाहय छी अहाँकें
फेर कहिया देखब
देखियो पायब कि नहि
कोन ठेकान
कालक गति
काले जानय।
एखन हाजिर अछि
मदभरल ठोर
कजरायल आँखि
बान्हल केश
आ अलतासँ रंगल नह
ई सभटा दृश्यकें
मोनक कोठीरमे बन्न करऽ चाहय छी।