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देखकर बस इक नज़र उसको दिवाना कर दिया / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'

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देखकर बस इक नज़र उसको दिवाना कर दिया
आँखों ही आँखों से दिल अपना हमारा कर दिया

मुद्दतों भटका किये जो इस गली से उस गली
बे-ठिकानों का यहां तू ने ठिकाना कर दिया

डूबने वाले को तिनके का सहारा है बहुत
डूबती कश्ती को तिनके ने सहारा कर दिया

जब भी जाना उसके घर तो कहना मेरा भी सलाम
और ये कहना के जो उसने कहा था, कर दिया

कुछ न कुछ बाक़ी रहेगा क़र्ज़ माँ के दूध का
कह न पाया कोई चुकता क़र्ज़ सारा कर दिया

नाख़ुदा ने छोड़ दी कश्ती मिरी मझधार में
शुक्रिया, तूफ़ान ने आकर किनारा कर दिया

मुद्दतों खेला, मिरे दिल से खिलौने की तरह
तू ही रख ले अब इसे तूने पुराना कर दिया

कुछ हुआ करता था मेरा और कुछ तेरा 'रक़ीब'
दो मुलाक़ातों ने देखो सब हमारा कर दिया