भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देखते देखते उतर भी गये / फ़िराक़ गोरखपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखते देखते उतर भी गये
उन के तीर अपना काम कर भी गये

हुस्न पर भी कुछ आ गये इलज़ाम
गो बहुत अहल-ए-दिल के सर भी गये

यूँ भी कुछ इश्क नेक नाम ना था
लोग बदनाम उसको कर भी गये

कुछ परेशान से थे भी अहल-ए-जुनूंन
गेसु-ए-यार कुछ बिखर भी गए

आज उन्हें मेहरबान सा पाकर
खुश हुए और जी में डर भी गए

इश्क में रूठ कर दो आलम से
लाख आलम मिले जिधर भी गये

हूँ अभी गोश पुर सदा और वो
ज़ेर-ए-लब कह के कुछ मुकर भी गये