भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देखना-सुनना-कहना / केशव शरण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसी का सिर
आ जाता है आड़े
किसी की टोपी
किसी का कंधा

पूरा-पूरा दिखाई नहीं पड़ता है गोरखधंधा
और पूछिए तो
एक अलग कहानी सुनाता है हर बंदा
फिर कहिए भी तो
क्या कहिए !