भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देखल यथार्थ / महामाया प्रसाद 'विनोद'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखल यथार्थ
भोगल जिनगी,
मन में उठल भाव
कल्पना के उड़नखटोला पर
उड़ के आवेला।
कागज का धरती पर
रोशनाई का रंग से
अल्पना सजावेला।
भाव सॅसर जाला
छन्द छन जाला
कविता बन जाला।
जिनगी का ह ?
रोअत रात
मुस्कात भोर
पसेना से तर-तर
जेठ के दुपहर
जिनगी का ह ?
मेहनत-मजदूरी करत
टूसिआइल बचपन
खिलल जवानी
मुरझाइल बुढ़ापा ह।