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देखा नहीं / इमरोज़ / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
कल मैं आया था
तू कहीं भी नहीं मिली
न राह में
न गली में
न दरवाजे पर
न माँ के कमरे में
न अपने कमरे में
न रसोई में
न आँगन में .
न कुएँ पर
न ही दरिया पर
तुम कहाँ थी ?
जहाँ तूने देखा नहीं
अपने आप में देखता
तो मैं दिख जाती