भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देखिये-तो / इसाक अश्क

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखिये-तो
किस कदर फिर
आम-अमियों बौर आए।

धूप
पीली चिट्ठियाँ
घर आँगनों में,
डाल
हँसती-गुनगुनाती है-
वनों में,
पास कलियों
फूल-गंधों के
सिमट सब छोर आए।

बंदिशें
टूटीं प्रणय के-
रंग बदले,
उम्र चढती
जन्दगी के-
ढंग बदले,
ठेठ घर में
घुस हृदय के
रूप-रस के चोर आए।