भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देखी बहार हम ने कल ज़ोर मय-कदे में / शाकिर 'नाजी'
Kavita Kosh से
देखी बहार हम ने कल ज़ोर मय-कदे में
हँसने सीं उस सजन के था शोर मय-कदे में
थे जोश-ए-मुल सीं शोरिश में दाग़ दिल के
गोया कि कूदते हैं ये मोर मय-कद में
फंदा रखा था मैं ने शायद कि वो परी-रू
देखे तो पास मेरे हो दौर मय-कदे में
है आरज़ू कि हम-दम वो माह-रू हो मेरा
दे शाम सीं जो प्याला हो भोर मय-कदे में
साकी वही है मेरा ‘नाजी’ कि गर मरूँ मैं
मुझ वास्ते बना दे जा गोर मय-कदे में