भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देखें सोचें / पृथ्वी पाल रैणा
Kavita Kosh से
देखें तो हमें लगता है
हम आकाश से ऊँचे हैं
और अगर सोचें तो हमें
जर्ऱा भी
पर्वत नजऱ आता है ।