देखे सूँ तुझ लबाँ के उपर रंग-ए-पान आज / वली दक्कनी
देखे सूँ तुझ लबाँ के उपर रंग-ए-पान आज
चूना हुए हैं लाला रूख़ाँ के पिरान आज
निकला है बेहिजाब हो बाज़ार की तरफ़
हर बुलहवस की गर्म हुई है दुकान आज
तेरे नयन की तेग़ सूँ ज़ाहिर है रंग-ए-ख़ून
किस कूँ किया है क़त्ल ऐ बांके पठान आज
आखि़र कूँ रफ्त़ा-रफ्त़ा दिल-ए-ख़ाकसार ने
तेरी गली में जाके किया है मकान आज
कल ख़त ज़बान-ए-हाल सूँ आकर करेगा उज्र
आशिक़ सूँ क्या हुआ जो किया तूने मान आज
तेरी भवाँ कूँ देख के कहते हैं आशिक़ाँ
है शाह जिसके नाम चढ़ी है कमान आज
गंगा रवाँ किया हूँ अपस के नयन सिती
आ रे समन शिताब है रोज़-ए-नहान आज
क्यूँ दायरे सूँ ज़ुहरा जबीं के निकल सकूँ
यक तान में लिया है मिरे दिल कूँ तान आज
मेरे सुख़न कूँ गुलशन-ए-मा'नी का बोझ गुल
आशिक़ हुए हैं बुलबुल-ए-रंगी बयान आज
जोधा जगत के क्यूँ न डरें तुझ सूँ ऐ सनम
तर्कश में तुझ नयन के हैं अर्जुन के बान आज
जानाँ कूँ बस कि ख़ौफ़-ए-रकीबाँ है दिल मनीं
होता है जान बूझ हमन सूँ अजान आज
क्यूँ कर रखूँ मैं दिल कूँ 'वली' अपने खेंचकर
नईं दस्त-ए-अख्ति़यार में मेरे इनान आज