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देख्यौ नँद-नंदन, अतिहिं परम सुख पायौ / सूरदास

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राग सारंग

देख्यौ नँद-नंदन, अतिहिं परम सुख पायौ ।
जहँ-जहँ गाइ चरति, ग्वालनि सँग, तहँ-तहँ आपुन धायौ ॥
बलदाऊ मोकौं जनि छाँड़ौ, संग तुम्हारैं ऐहौं ।
कैसैहुँ आजु जसोदा छाँड़यौ, काल्हि न आवत पैहौं ॥
सोवत मोकौं टेरि लेहुगे, बाबा नंद दुहाई ।
सूर स्याम बिनती करि बल सौं, सखनि समेत सुनाई ॥

भावार्थ :--श्री नन्दनन्दन ने जब वृन्दावन देखा तो उनको बहुत बड़ा आनन्द प्राप्त हुआ । जहाँ-जहाँ गायें चरती हुई जाती थीं, वहाँ-वहाँ गोपबालकों के साथ स्वयं भी दौड़ते रहे । (बड़े भाई से बोले -) `दाऊ दादा! मुझे छोड़कर मत आया करो, मैं तुम्हारे साथ ही आऊँगा । आज तो किसी प्रकार मैया यशोदा ने छोड़ दिया है, (अकेले) कल नहीं आ पाऊँगा । नन्दबाबा की शपथ, मैं सोता रहूँ तो मुझे पुकार लेना ।' सूरदास जी कहते हैं कि इस प्रकार श्यामसुन्दर ने सखाओं सहित बलरामजी से प्रार्थना की ।