देख अपनी बदनसीबी दिल यूं धड़कता यारो/ मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
देख अपनी बदनसीबी दिल यूं धड़कता यारो ,
जैसे गुलाब पत्ती-पत्ती बिखरता यारो !
इस ज़िन्दगी में खुशियां आती हैं यूं कि जैसे ,
बादल से लुकते- छिपते सूरज निकलता यारो !
बिजली चमक रही है,ढ़क लूं मैं दिल का शीशा ,
टूटा हुआ है यूं तो, पर क्या बिगडता यारो !
क्यूं रो रहे हो उसने जाना था एक दिन तो ,
कोई किसी के घर में कब तक ठहरता यारो !
अपने नसीब पे मैं जी भर के आज रो लूं ,
दिन बारिशों से धुल कर ही है निखरता यारो !
देखी करीब से है मैंने ये बदनसीबी ,
पूछो मुझे मुक़्ददर कैसे सँवरता यारो !