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देख निरत / ओम पुरोहित कागद
Kavita Kosh से
ओळ साम्हूं
लाज ढकूं
दाझै पांखां
तकूं आभौ
आभौ ताकै
सूना खोड़!
तज मेघाळो
आव मुरधर आभै
देख निरत
धोरां रा
मन मोरिया
कीकर नाचै।