देना जवाब / मनोहर अभय
लिख रहे खत तुम्हें
देना जवाब
वापसी डाक से।
जब से गए
घर छोड़ कर
खुशियाँ गईं
मुँह मोड़ कर
बच्चे बिजूके हुए
देखते निर्वाक से।
नाम रटती तुम्हारा
सारिका सँझा सवेरे
गइया रम्भाती रात-दिन
खूँटे तोड़ते आहत बछेरे
पूछती राजी-खुशी
अम्मा बिचारी काक से।
सरहद किनारे
आपना है गाँव
तिनके बराबर
दिखती नहीं है छाँव
बारूद के गोले
तमाचे मारते तपाक से।
नील गायों ने
खड़ी खेती उजाड़ी
बिगड़ैल बैलों ने
जड़ें पीपल की उखाड़ीं
झर रहे पत्ते हरे
सूखे ढाक से।
अच्छा किया
बस गए शहर में
पानी ढूँढ़ते फिरते यहाँ
सूखी नहर में
सतो समुन्दर
पार जाओगे
तैरते तैराक से।
सम्हल कर रहना
हो रही अपनी गुजर
और क्या करना
हो रही पूरी उमर
कब कौन जाने
वक्त की मछली
छापा मारदे छपाक से।