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देव-देवी / प्रकीर्ण शतक / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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गणेश - दह-दह पीअर गंधकी, दप-दप पारद स्वच्छ
विधि योगेँ सिंदूर रस हरओ दुःख परतच्छ।।1।।
वाणी - जनिक अंग रंगहिँ मलिन, कुन्द इन्दु हिम बिन्द
बानी सुनि धुनि पिकक पुनि, बीना बेनुक मन्द
ब्रह्मा-ब्रह्मणी - वसन वरन आभरन मन, भूषन वाहन अंग
अमल धवल शुचि नवल पुनि, रक्त पुरातन संग।।3।।
हरि-हर - शयन वसन फणि, वदन सिर चान, गंग पद शीश
नील कलेवर कण्ठ वा जय हरि - हर जगदीश।।4।।
रुद्र - विदित शत्रु श्वसुरक तदपि सासुर बसला रुद्र
अर्ध - चन्द्र विष भोजनो उचित कलापी क्षुद्र।।5।।
हरि - लय लक्ष्मी पुनि शेष मणि रत्नाकरक अनन्त
क्षीरोदधि लोभेँ बसल घर जमाय हरि हन्त।।6।।
श्यामा - शुभ्र दंत, रसना अरुण कृष्ण केश तन श्याम
पीत मदिर, हरितारि-शिर चित्र चालि, सत धाम।।7।।
सूर्य - तिमिर निशाचर निकर हति, जडता करइत दूर
प्रमुदित जग करइत, उदित प्राची दिनपति सूर।।8।।
सृष्टि आदि आदित्य नित तिथि थापक दिनमान
पुनि तिमिरान्तक अन्त छथि जगतक ज्योति निदान।।9।।