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देव / इधर कई दिनों से / अनिल पाण्डेय

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1.
देव
एकत्व से परिपूर्ण तुम
द्वंद्व मे नहीं रहे
अपने समय के अन्तिम दिन तक
मनुज
खण्डों में विभाजित तुम
प्रतिद्वंद के अधिकार में
न हो ससके स्वयं हित आज तक

2.
देव
तुम सुन्दर थे
प्रकृति के हित अर्पित
सुन्दर थी नियति तुम्हारी
मनुज
तुम असुन्दर थे
विकृति के जड़ रक्षक
संताप की प्रकृति तुम्हारी