देशभक्त की दहाड़ / कौशलेन्द्र शर्मा 'अभिलाष'
तेरी यही नापाक करतूते खरोचे देह को,
पर जो नृसिंह क्रोधित हुआ तो चीथड़े उड़ जाएंगे।
पैदा हुआ हमसे हमीको दे रहा धमकी कहाँ,
जो शिव त्रिनेत्र खुले कदा तो राख ही उड़ पाएंगे।
जो सोचते ले उड़ चलेंगे भूधरा को गीदड़ों!
तो राम के बाणों बिंधोगे मृत्यु गीत सुनाएंगे।
जो तुम हज़ारों कंस हो तो हैं करोड़ो कृष्ण भी,
जो छू रहे हैं आग को चिर भस्म ही रह जाएंगे।
चुप्पी को डर तूँ भाँप ना ये तो तुम्हारी भूल है,
जो जयध्वनि गूँजी कहीं काले निलय जल छाएंगे।
इतिहास भी तो जानता गर खेलता हमसे कदा,
भूखण्ड बंजर ही रहा बैठे सदा पछताएंगे।
भीख देकर सिर चढ़ाया भोगना तो है ही है,
तब क्या पता था श्वान के पिल्ले सभी हमसे पले हैं।
दे दिया अपना कहाँ उनका कहाएगा सदा,
कंकण भी ना बच पाएगा अब कुचलना पैरो तले हैं।
वाह धूर्तस्थानियों तुम नीच से भी नीच निकले,
इन सभी कुत्तों से बढ़कर नाल के सूंवर भले हैं।
मूर्खता की हद नहीं कोई बताओ जा जरा,
ये गीदड़ों के झुण्ड देखो सिंह को धरने चले हैं।
अंग में हो कान्ति तो दो हाथ करलो युद्ध में,
जो एक बूद पतित रुधिर पर दस तुम्हारों के गले हैं।
फिर कहुंगा शरण आओ शरण आओ तो भला,
वरना अनेको कीट दीप समीप अनजाने जले हैं