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देश-प्रदेश / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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मैथिल ललना - सींथ सोझ, कोँचा कुटिल, पैघ आँखि, मुह पानि
लुरिगरि गितगाइनिसहज लिअ तिरहुति तिय जानि।।1।।
दृग चंचल अंचल भरल कुंचित कच मुख पान
तिरहुति पद गबइत चललि धनि जनि गंगा स्नान।।2।।

वंग-अंगना - मधु भाषा, दृग चंचला चूल चारु घन श्याम
बंग-अंगना ककर मन हरय न रूप ललाम।।3।।

असम-कामिनी - तरल नयन, लहु लहु वयन, चित्रित चारु पटोर
काम-रूप कामिनि असम, श्याम रहओ वा गोर।।4।।

उत्कल-वधू (उड़िया) - कृश कटि उर तटि अकृश पुनि वरन न श्यामल गोर
चटुल - नयनि उत्कल-वधू रुचइछ प्रणय - विभोर।।5।।

आंध्री पुरंध्री - कुंडल मंडित गण्ड थल कच रुचि घन, कुच कन्द
आंध्र - पुरंध्री रूप छवि सभ केँ बनबय अंध।।6।।
द्राविडी - श्यामा कुवलय - कोमला नवला द्राविड नारि
कुंद - दतिका बिहुँसि, उर ककर न दैछ ओदारि।।7।।

केरली - लघु शरीर, मुख गोल, शुचि कुंद दंति छविवंति
रुचिर चिबुक धनि केरली हेरइत हृदय हरंति।।8।।

मराठी-महिला - वसन वचनमे पौरुषक रस लालित लावन्य
मिलित मराठी खटमधुर ककर न जीवन धन्य।।9।।

गुजराती - उर उदार रस रुचि व्यंजन रंजन - दक्ष
गुर्जर सरस नितम्बिनी ककर न बस मन - कक्ष।।10।।

सिन्धी - बसनहु व्यंजित तनु सुछवि मनि नासिका अनन्य
वधू सैन्धवी रूप रति रंजित रस लावन्य।।11।।
पजाविनी - चपक - वरनी पचनद - रमनी गठित-शरीर
मद गयद गति गामिनी करइछ हृदय अधीर।।12।।
कश्मीरी - कनक गौर मुख रुचि ललित कुंकुंम - रजित अंग
अगुरी छवि कश्मिरी बाला बलित अनंग।।13।।

राजस्थानी - प्रचुर रुचिर-वसना धनी प्रिय-भूषण प्रशस्त
राजस्थानी सुन्दरी लखि मन ककर न मस्त।।14।।