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देश की कहानी : दादी की ज़बानी / अज्ञेय

 
पहले यह देश बड़ा सुन्दर था।
हर जगह मनोरम थी।

एक-एक सुन्दर स्थल चुन कर
हिन्दुओं ने तीर्थ बनाये
जहाँ घनी बसाई हुई
गली-गली, नाके-नुक्कड़
गन्दगी फैला दी।

फिर और एक-एक सुन्दर जगह खोज
मुसलमानों ने मज़ार बनाये :
बसे शहर उजाड़
जिधर देखो खँडहरों की क़तार लगा दी।

फिर और एक-एक सुन्दर जगह छीन
अँगरेज़ों ने छावनियाँ डाल लीं
हिमालय की, बस, पूजा होती रही,
पर्वती सब देसवालिये हो गये।

जब धर्म-निरपेक्ष, जाति-निरपेक्ष
भारतीय लोकतन्त्र हुआ है :
अब बची सुन्दर जगहों को
स्मारक संग्रहालय बनाया जा रहा है।

पहले विदेशी के लिए हर सुन्दर जगह
‘आदिम संस्कृति की क्रीड़ाभूमि’ थी,
अब स्वदेशी के लिए हर सुन्दर जगह
‘नयी संस्कृति का यादी अजायबघर’ है।

पहले हर जगह मनोरम थी
यह देश बड़ा सुन्दर था :
अब हर जगह किसी की यादी है :
अब भी यह देश बड़ा सुन्दर है।

नयी दिल्ली, 9 सितम्बर, 1968