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देश को अब चाहिए ख़ुशनुमा सा एक प्रभात / रवीन्द्र प्रभात
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अनुभवों का फ़िर नही कोई बहाना चाहिए,
सोच जिसमें है नई वह आजमाना चाहिए।
थक गए हैं जो सफ़र में दीजिये आराम उनको-
एक इंजन जोश से लबरेज आना चाहिए।
बेवज़ह ही ढूँढ़ते हो खोट गमलों में मियाँ-
झुक गया है पौधा उसको एक निवाला चाहिए।
घर में आकर जो हमारे दे गए बेचैनियाँ-
उस पड़ोसी से हमें दूरी बनाना चाहिए।
जल रहा है जो परिंदा चीख़ कर यह कह रहा –
रोशनी से इस कदर ना यूँ नहाना चाहिए।
देश को अब चाहिए ख़ुशनुमा सा एक प्रभात-
जिसके पीछे चल सके पूरा ज़माना चाहिए।