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देश ठगा दिखता है / रविशंकर पाण्डेय
Kavita Kosh से
देश ठगा दिखता है
हर आनेवाला
आते ही
अपना बहुत सगा दिखता है,
हर जानेवाला
जाते ही
धोखा और दगा दिखता है!
सुबह शाम
आकर देता है
आश्वासन की मीठी गोली
इनकी इन
टेढ़ी चालों को
समझ न पाई
जनता भोलीय
सच पूछो तो
मुझे शख्स वह
एक सियार रंगा दिखता है!
रंग बदलता
रूप बदलता
आए दिन वह रोल बदलता,
नारे बदल-बदल कर उनके
बोल बदलता ढोल बदलताय
उसके मुंह पर
एक मुखौटा
नकली मुझे लगा दिखता है!
आयाराम न बतलाए तो
कोई गयाराम से पूछे,
सब के सब क्यों
देते आए
आश्वासन छूछे के छूछेय
इनकी करतूतों से मुझको
सारा देश ठगा दिखता है!