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देश सदैव निराला रहे / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

रहे दूर सदा तम लौकिकता मन में भरा दिव्य उजाला रहे।
बसा मूरत आपकी भव्य सदा उर मेरा मनोज्ञ शिवाला रहे।

रसना रस नाम का पान करे करती ही रहे सदा जीवन में,
अरूणाचल प्रेम के पाटल सी शुचि जीवनी ये छविशाला रहे।

हर जरवन चन्दन चन्दन हो विषधारी रहें यहाँ शान्त सदा
मुख में सद्ज्ञान सुपावन हो तन पे सद्भाव दुशाला रहे।

जगती में बसन्त बहार सदा हर बाग का रंग सिंगार रहे
रहें कोकिल के रस गीत यहाँ मधुपों की सजी मधुशाला रहे।

गुरू ज्ञान की ज्योति जगाता रहे पथ धर्म प्रशस्त बनाता रहे
बना विश्व का दिव्य दिवाकर सा यह देश सदैव निराला रहे।

निज सभ्यता विश्व समादृत हो गुरूता शुचिता नवता उभरे
यही कामना है निज संस्कृति, संस्कृत राष्ट्र की संस्कृत बाला रहे।