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देश सबका / रंजन कुमार झा

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देश सबका, जीयेंगे सभी शान से
पालती सबको है एक ही धरती माँ
जान दी है सबों ने वतन के लिए
चाहे हिन्दू कोई हो या मुस्लिम जवां
               
कितने अद्भुत रचे गीत मजरूह ने
औ नेपाली की रचना लुभाती रही
धुन सचिनदेव के हों या रहमान के
राग रंगों के दीये जलाती रही
हों मोहम्मद रफ़ी याकि दीदी लता
भूल सकता है कैसे ये हिन्दोस्ताँ
               
मिट्टी तुलसी की, ग़ालिब की, मीरा की यह
इसमें खुसरों भी हैं सूर रसखान हैं
सानिया सायना में है अंतर ही क्या
सब तो अपने धरा की ही संतान है
एक साझी विरासत है इस देश की
कितनी सुन्दर अनोखी अजब दास्ताँ

रहते आये हैं सदियों से सद्भाव से
एक दूजे से हिल-मिल गुजारे हैं दिन
साथ होली हुई और रमजान भी
रह सके न कभी एक दूजे के बिन
हिन्दू के दुःख में मुस्लिम भी रोते रहे
हर जगह साथ रहने के मिलते निशां

आँधियां आती हैं तो उजड़ते हैं घर
सबके हिंदु के हों या मुसलमान के
सब बराबर हैं नज़रों में अल्लाह के
फर्क कुछ भी नहीं दिल में भगवान के
राह सबकी जुदा एक मंजिल मगर
एक ही है धरा एक ही आसमाँ

वो हैं कायर जो लड़ते धरम के लिए
गर लड़ें तो लड़ें हम वतन के लिए
सबको रोटी मिले और सम्मान भी
कोई तरसे न दो गज कफ़न के लिए
स्नेह के भाव सबके दिलों में बसे
भेद कोई रहे न कभी दरम्याँ