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देसिल वयना क अस्तित्व / कालीकान्त झा ‘बूच’

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भुवनक सभ सँ मिठगर वयना
बेन जकॉ अहॉ बाँटि देलहुँ
औ भलमानुष मिथिला नंदन
मातृक देहक कुरी लगयलहुँ
केओ दछिनाहा केओ तिरहुतिया
केओ वज्जि - सरैसा केओ कोशिकन्हा
एक्के नादि मे सभ मधुर चखै छी
तखन विलग अछि छान ओ पग्घा ?
कत‘ छी हम सभ कत‘ हमर मिथिला !
कत‘ विदेह नोर खसवै छथि?
कत‘ वैरागी वनि विद्यापति वैसल छथि
कत‘ सिया वेटी कुहरै छथि ?
अहॉ छी भलमानुष त‘ रहू
हम अधम मुदा छी मैथिली भाषी
अहॉ पढ़ू अंगरेजी, फ्रेंच, जपानी
आन वयना वाजू घुमैत काशी ।
नहि अछि हमरा द्वेष अहॉ सँ
छोड़ू नहि अपन उत्थानक अवसरि
मुदा! द्रविड़, वंग गुजराती केॅ देखू
हुनक वयना गेलनि आर्यावर्त मे पसरि
ओ नहि अपन भाखा केॅ छोड़लनि
स्वभूमि हो वा हो प्रवास
नेना भुटका संग देसिल वयना मे वाजू
जगाउ अगिला पिरही मे विश्वास
चन्दा सुमन यात्री मधुपक
जुनि करू भावना पर अघात
दिवस निकट ओ आबि रहल अछि,
हेती मैथिली सभ सँ कात