देसूंटो-4 / नीरज दइया
जिण किणी मिनख री मळक
पूगै आभै तांई
बो लुक नीं सकै
भाग रै खातै सूं
निकळै तद उगराई
मिनख नै सूंपणी पड़ै
सांस हेमाणी
बो लुक नीं सकै
केई-केई वळा
आभो ई चावै
मिलै इण मिस
थोड़ी-सी’क मुगती
आपरै अंधारै सूं
करै खासो उजाड़
जद उतरै आभै सूं
कड़कड़ाट करती बीजळी
बीजळी लावै अठै
कर काठो काळजो
आंधी अर अंधारो
अर लेय जावै पळक
उखड़ जावै
जड़-समेत मिनख
ठाह नीं किण मन सूं
संभाळै आभो- ‘मिनख-जड़’
आभो रोपै दूसर
सूंपै सांस-सापती
पाछी किणी दूजै देस
किणी दूजै भेस
आभो नूंतै
बारी-बारी सगळां नैं
बो हुवै हरो
उण री नगरी
हुया करै हरी
मिनखां रै पाण
जिंयां मिनख हुवै
मिल परो मिनखां सूं हरो
फगत सुपना ईज नीं
हुवै मिनख ईज
किणी धोरै दांई
पड़ै नीं ठाह
कै कद जावै बैठ
अर आंधी रै जोर
बिछड़ पूगै परबस
अणजाणी किणी कूंट
उडीकतो
सांस नैं
सुपनां नै
अर मिनखां नैं
करणहार
कोई दूजो नीं
फगत थूं है सांवारा
ओ सांच है
कै म्हारो सिरजक
थूं है सांवरा
म्हैं थारी रचना
थूं म्हारो सिरजक
थूं कठै है
थारै रचियै इण देस मांय
बारै है थूं
का मांय है-
म्हारै थूं
अरूप मांय नीं आंळखूं
म्हनै चाइजै कोई रूप
अेक रूप सैमूंढै
म्हारै मांय है जिको नीं
म्हनै चाइजै बारै
कोई रूप सैमूंढै
म्हारा सिरजक !
थूं दीनो म्हनै
थारै देस सूं
कीं रचण रै मिस पैलो देसूंटो
कांई कूख ई नांव है-
किणी देस रो
म्हनै मिल्यो
उठै सूं ईज देसूंटो
म्हैं थारो सुपनो
थूं म्हारी सांस
म्हैं थारो रूप
थूं म्हारो रंग
थारै रंगां
म्हैं ढळियो
म्हारै रूप
थूं ई जलमियो
टाबरपणै म्हैं
बिछड़ग्यो थारै सूं
चेतो ई नीं रैयो
कै कद चेतै सूं
उतरग्यो थूं !
कीं सावळ नीं दीसै
जाणै बिराजै थूं
म्हारी आंख मांय
कोइयै री ओट
म्हारै टाबरपणै
थूं गुड़काई
बांध परी
खुद सूं म्हारी
जूण-गाडी
गुड़कणी गाडी
इतरी गुड़की
इतरी गुड़की
अजेस गुड़कै
गुड़कणी-गाडी म्हारी
गाडी दीसै
पण नीं दीसै
डोर थारी
थारी सांस दीसै
पण नीं दीसै
सुपनो थारो
थारी रचना दीसै
पण नीं दीसै
किणी नैं थूं सांवरा
दरपण सामीं ऊभै नैं
अेकर दीस्यो थूं
अर घणी वळा
दीसै थूं
पण थनै
परस करण री कला
नीं जाणै
म्हारै मांयली छिब
जिकी उतरै
दरपण मांय
छिब म्हारी
परस करण री सोचूं-
म्हैं थनै
अर बधावूं हाथ
तद छिब म्हारी
थनैं नीं परसै
म्हनै खुद नै परसै
म्हारै हुयां
थूं है
अर थारै हुयां
म्है हूं
इण री ठाह हुवै
अर ठाह नीं हुवै
म्हारा सिरजक
साव अणजाण हूं म्हैं
नीं जाणूं-
कठै है सुपनो थारो
बो सुपनो थारो
जिको नित-नेम सूं मांडै-
सांस म्हारी
पांच चीजां
रळाई थूं
अर रळगी
घड़ सकां
थारै परताप-
माटी रो मिनख