देसूंठो / करणीदान बारहठ
बो राम जबर जोधा जो हो,
रावण न मार गिरावणियो।
लंका नै धूल चटावणियो,
पुरखां नै सार सिखावणियो।
बो खड़यो हाथ में धनुस लियां,
बो धनु री डोरी ढीली ही।
माथै रा तोरण फीका हा,
आंखड़ल्यां आंसू गीली ही।
लछमण हो मुंह लटकायोड़ो,
हो भरत बाप सो मरियोड़ो।
चरत चपेड़ी खायोड़ो सो,
सगलां रो मुंह थोड़ो थोड़ो।
बै सूर सूरमां सामी हा,
मुंह पर ही मुछ्यां मुरलांती।
बै लव-कुश-राम रा गायड़मल,
सागै ही सीता सतवन्ती।
बालमीक झट आगै आयो,
बोल्यो मरजादा पुरषोत्तम।
सीता नै देसूंठो दे दीनो,
जे मिनख हुवै तो घणीं सरम।
राम सुणी आयो बोल्यो,
है घणी खमा है ऋषीदेव।
ओ राजनीत रो नयो रूप,
औ लोकराज है मुनीदेव।
ईं लोकराज में जनता री,
बाणी कानून बणावै है।
जनता है ऊंची राजा स्यूं,
जनता कानून चलावै है।
राजा है केवल एक रूप,
जनता मानीज्यो पूजीज्यो।
ज्यूं देव देवता पत्थर रो,
मान्यां देव नहीं पत्थर बो।
परजा समझै है भलो बुरो,
सगलां मिनखां रा जाया है।
अक्कल सगलां में घाल्योड़ी,
सगलां मिनखां री काया है।
राजा रो जायो एक मिनख,
सगलां पर हुकम चलावै क्यूं।
बांरी चाकी रो पीस्योड़ो,
बो एक मिनख ही खावै क्यूं।
हे मुनीदेव, ईं वाणी में,
जद बीरमदेव री बस्ती है।
परजा है नावक साचोड़ी,
मस्ती री अपणी कस्ती है।
परजा वाणी रै कहणै स्यूं,
सीता देसूंठो दे दीन्यो।
माड़ी है या आच्छी है,
मैं तो ओ कारज कर दीन्यो।
बालमीक माथो तरणायो,
बोल्यो परखहीण है रामचंदर।
बन में बसणै स्यूं भला मिनख,
तेरी अक्कल रो मुंह बन्द।
सीता नारी है सतवन्ती,
आ परखी अगन परिक्षा स्यूं।
फेर भला तूं कूंकर काडी
अपणा सै सगा सरीखा स्यूं।
जे बुरी समझ ली तूं ईनै
तो क्योंकर अवध दिखाई तूं।
जै भली परखली तूं ईंनै,
तो जंगल बीच भिजाई क्यूं।
परजा रै कहणै स्यूं भोला,
आ भूंड घणी दिखाई है।
ईं लोक राज री, सत बातां,
तूं माटी ही पिटवाई है।
ईं लोकराज में घणा मूरख,
अक्कल है मूरख री हामी।
मूरख रै कहणै स्यूं करली,
तूं राम राज री बदनामी।
जै लोकराज रो ओ रूप,
आ लोकराज री परिभाषा।
तूं मान भले या नहीं मान,
आ गुंडा लुच्चा री अभिलासा।
अक्लमंद भूखा मर ज्यासी,
लंगवाड़ मौज उड़ावै ला।
परजा रा भोला साथीड़ा,
गुंडा नै राज दिरावै ला।
जै बात सुणी माड़ी भूंडी,
की घोलै सिर नैं बुलवान्तो।
तनै खूण में बाड़ बावला,
बो तेरा हियो खुलवान्तो।
रै आतो सीता साची ही,
साचो हो ईंरो मन माथो।
जै पर पुरख स्यूं पट ज्याती,
तूं के पुरखोत्तम कहलान्तो।
नारी धरती री धारण है,
नारी मिनखां री मरजादा।
नारी रे सत पर टिक्योड़ी,
आधन धारण धरती माता।
ज्यूं ढोल बावली पुरखां रो,
बो डोल नारियां कर लेंती।
आ सींव समुन्दर खो देती,
धरती धारा में मिल लेंती।
साची कूं तूं रामचन्द्र,
नारी री माटी पिटवाई।
तूं तो सीता रो पति हो,
आ इज्जत सीता दिलवाई।
बन में फिरतो मारयो मारयो,
तूं राम रामलो कहलांतो।
लोग लुगाई ले ज्यांता,
भायां में भूंडो पड़ ज्यांतो।
जीं धरती री नारी स्याणी,
बा धरती धरम टिकावै है।
जीं घर री नारी स्याणी है,
बो घर स्वर्ग कहावै है।
ओ स्वर्ग नरक है धरती पर
ढूंढयो अम्बर दीख्यो कोनी।
जो सुख है नारी रै सागै,
बीं सुख रो लेखो कोनी।
राम सुणे सै बातां हीं,
अब हियो राम रो सुलग्यो हो।
सीता नै सारै ले लीनी,
लव-कुश नै प्यार बढ़यो हो।
अब राम कहयोः हे मुनीदेव,
बस खमा करो हे मत दाता।
मेरी पोथी में मत लिखज्यो,
अै खरी खोटड़ी सै बातां।
कर दंडवत सै विदा हुया,
परिवार राम रो संग बोरां।
माथां में बात पचा लीनो,
बां राम सरीखां रणधीरां।