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देह में रामायण विचार / शब्द प्रकाश / धरनीदास

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कया कनक गढ़ लंक, वंक तृष्णोदधि जानी। रावन है हंकार, मया मन्दोदरि रानी॥
रामचन्द गुरु-ज्ञान, क्षमा है लक्ष्मण सोई। मन मानो हनुमान, सत्य सीता है जोई॥
मुम्भकरन निद्राभई, भाव विभीषन लेखिया।
धरनी अंग प्रसंग करि, रामायण कहि देखिया॥11॥