भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देह / मुकेश निर्विकार
Kavita Kosh से
देह
स्मृतियों की गाॅंठ
कामनाओं की कनस्तर
सांसों की फंूकनी
पानी का प्रवाह
अविरल
रक्त की नदी
गतिमान
धड़कनों का वाद्ययंत्र
रोमकूपों से गंधाता स्वेद, बेशक
किन्तु
आत्मा की अनिवार्य स्थली
-पुण्य, पावन, पुनीत
तपोस्थली एक!