दे गयी जो प्रिये! प्रीति-संवाद है। / जितेन्द्रकुमार सिंह ‘संजय’
दे गयी जो प्रिये! प्रीति-संवाद है।
आज भी वह प्रतिज्ञा हमें याद है॥
लाल चूनर सजा रूप वह अनछुआ
सप्तपद चल पड़ा मन्त्र पढ़ता हुआ
लाज के पोखरे में नहाये हुए,
दो सजल मीन देते प्रणय की दुआ
युग्म उर-वस्त्र सिलकर गृहस्थी बनी
सूत्र देता चला दिव्य आह्लाद है।
दे गयी जो प्रिये! प्रीति-संवाद है,
आज भी वह प्रतिज्ञा हमें याद है॥
मानसर तैरती थी मराली प्रिये!
रक्त अम्भोज की भव्य लाली प्रिये!
रोशनी का कलश द्वार रखती चली,
पैजनी गीत रचती दिवाली प्रिये!
छोड़कर चल पड़ी कण्व-आश्रम वही
भूप दुष्यन्त के राजप्रासाद है।
दे गयी जो प्रिये! प्रीति-संवाद है,
आज भी वह प्रतिज्ञा हमें याद है॥
पद्मदल-से खिले दो खिलौने दिये
चाँद ने माथ लोने डिठौने दिये
रूप-कानन विचरते सुमृग के लिए,
ज्यों मृगी ने भली-भाँति छौने दिये
ज़िन्दगी के सुखद नील आकाश में
चाँदनी के तले चाँद आबाद है।
दे गयी जो प्रिये! प्रीति-संवाद है।
आज भी वह प्रतिज्ञा हमें याद है॥