भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोई नेंनन की तरवारें / ईसुरी
Kavita Kosh से
बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
दोई नेंनन की तरवारें,
प्यारी फिरें उवारें।
अलेमान, गुजराम सिरोही।
सुलेमान झकमारे।
ऐंचत बाढ़ म्याँन घूँघट की,
दैकाजर की धारैं।
ईसुर स्याम बरकते रइयो,
अंधयारै उजयारै।