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दोनों तरफ़ / जितेन्द्र सोनी
Kavita Kosh से
दोनों तरफ़
नारी जिस्म
नुमाइश को
एक
चिथड़ों में लिपटा
किसी मजबूर गरीब का
दूसरा
बहुत कम कपड़ों में
किसी आधुनिक अमीर का