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दोपहर-चित्र / विजयदेव नारायण साही

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धू: धू: धू:

आग और गुबार का
लाल-लाल बवण्डर
पछाड़ खाता है
मकानों, मैदानों, नदियों, वीरानों पर :

बंद दरवाज़े से लगा हुआ
आहट सुनता दबीज परदा
हिल उठता है ।
सफ़ेद कबूतरों का जोड़ा
गोद में बैठे बच्चों-सा
खपरैल के नीचे कार्निस से
कमरे की भीगी फ़र्श को देखता है

दुबके हुए लोग, लू ।