धृतराष्ट्र सरीखे बन बैठे, जो धर्मराज कहलाते थे ।
झूठे आश्वासन, वादों से ,जनता का  मन बहलाते थे । 
कुछ अच्छे दिन को रोते हैं,कुछ लोकपाल बिल फाड़ रहे ।     
जितनों के करतल खाली हैं , वो संसद में चिंघाड़  रहे । 
	
पत्रकारिता तो  जैसे , कोठे पे बैठी लगती है ।            
इनके भ्रष्टप्रचारों से , सीने में आग सुलगती है । 
कितनी है नेकी और बदी, पैसों से तोला जाता है ।                      
जितने से सत्ता बनी रहे, उतना सच बोला जाता है ।
	
 ये लोकतंत्र है दस्यु को, एकटूक जीत दिलवाता है ।                     
 हैवान के जाये जैसों को, ये बिरयानी खिलवाता है ।  
ये एक अकेला देश विश्व में, जिसको माता कहते हैं ।                    
जितनी दुश्मन आबादी , उतने तो बाबा  रहते हैं ।
	
इस देश में कन्याभ्रूणों को,कचरे में फेंका जाता है ।                         
ये देश जहाँ नवयुवती को, तंदूर में सेंका जाता है ।
संविधान की हत्या ही, अब राष्ट्रभाग्य की रेखा है ।                     
नारीप्रधान इस देश में हमने,कांड “दामिनी” देखा है ।
क्या इन कोरी रचनाओं से हम,  देशप्रेम पा सकते हैं ?   
सच बतलाना , हममें  कितने राष्ट्रगान गा सकते हैं ?
तुम पी.एम हो या सी.एम हो, लेकिन भारत से बड़े नहीं ।
धिक्कार तुम्हारे जीवन पर,यदि राष्ट्रमानहित खड़े नहीं । 
ईमान,त्याग,  नैतिकता सब फूँका है क़फनखसोटों ने ।           
हर तंत्र हमारा घायल है ,  गाँधी चिपके हैं नोटों में । 
हम शर्म नहीं करते प्यारे , अपने  अधिकार गिनाते हैं ।      
दो रोज़ साल में माता के, सच्चे सपूत बन जाते हैं । 
	
हम ख़ुद से लड़ते रहते हैं, कोई विरोध में नहीं खड़ा ।  
सारा इतिहास खँगालो तुम, मस्जिद से मंदिर नहीं लड़ा ।
“विद्रोही”जी कुछ शर्म करो,यदि दावानल आक्रोश नहीं ।
कविता गर्भ में पलता हो यदि, पुण्यप्रलय जयघोष नहीं ।
	
 याद करो  उन वीरों को, जिनने अपना तन वारा है ।                    
 कहने  को  तो हर कविता में  ,वो कश्मीर हमारा है । 
किसको दोषी ठहराऐ यारों , क्या हम ज़िम्मेदार नहीं ?        
अंतरमन से प्रश्न करो , क्या हम थोड़े गद्दार नहीं ?