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दोषी कौन / विजय कुमार विद्रोही

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धृतराष्ट्र सरीखे बन बैठे, जो धर्मराज कहलाते थे ।
झूठे आश्वासन, वादों से ,जनता का मन बहलाते थे ।
कुछ अच्छे दिन को रोते हैं,कुछ लोकपाल बिल फाड़ रहे ।
जितनों के करतल खाली हैं , वो संसद में चिंघाड़ रहे ।

पत्रकारिता तो जैसे , कोठे पे बैठी लगती है ।
इनके भ्रष्टप्रचारों से , सीने में आग सुलगती है ।
कितनी है नेकी और बदी, पैसों से तोला जाता है ।
जितने से सत्ता बनी रहे, उतना सच बोला जाता है ।

 ये लोकतंत्र है दस्यु को, एकटूक जीत दिलवाता है ।
 हैवान के जाये जैसों को, ये बिरयानी खिलवाता है ।
ये एक अकेला देश विश्व में, जिसको माता कहते हैं ।
जितनी दुश्मन आबादी , उतने तो बाबा रहते हैं ।

इस देश में कन्याभ्रूणों को,कचरे में फेंका जाता है ।
ये देश जहाँ नवयुवती को, तंदूर में सेंका जाता है ।
संविधान की हत्या ही, अब राष्ट्रभाग्य की रेखा है ।
नारीप्रधान इस देश में हमने,कांड “दामिनी” देखा है ।

क्या इन कोरी रचनाओं से हम, देशप्रेम पा सकते हैं ?
सच बतलाना , हममें कितने राष्ट्रगान गा सकते हैं ?
तुम पी.एम हो या सी.एम हो, लेकिन भारत से बड़े नहीं ।
धिक्कार तुम्हारे जीवन पर,यदि राष्ट्रमानहित खड़े नहीं ।

ईमान,त्याग, नैतिकता सब फूँका है क़फनखसोटों ने ।
हर तंत्र हमारा घायल है , गाँधी चिपके हैं नोटों में ।
हम शर्म नहीं करते प्यारे , अपने अधिकार गिनाते हैं ।
दो रोज़ साल में माता के, सच्चे सपूत बन जाते हैं ।

हम ख़ुद से लड़ते रहते हैं, कोई विरोध में नहीं खड़ा ।
सारा इतिहास खँगालो तुम, मस्जिद से मंदिर नहीं लड़ा ।
“विद्रोही”जी कुछ शर्म करो,यदि दावानल आक्रोश नहीं ।
कविता गर्भ में पलता हो यदि, पुण्यप्रलय जयघोष नहीं ।

 याद करो उन वीरों को, जिनने अपना तन वारा है ।
 कहने को तो हर कविता में ,वो कश्मीर हमारा है ।
किसको दोषी ठहराऐ यारों , क्या हम ज़िम्मेदार नहीं ?
अंतरमन से प्रश्न करो , क्या हम थोड़े गद्दार नहीं ?