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दोस्त और जाति / पंकज चौधरी
Kavita Kosh से
दोनों दोस्त थे
और संयोग से दोनों एक ही जाति के भी थे
दोनों जब मिलते
तो लगता कि तोता और मैना मिल रहे हों
दोनों बात करने जब एकांत मे बैठते
तो अपनी जाति के इतिहास
वर्तमान और भविष्य को खंगाल डालते
अपनी जाति के भारत निर्माण में
योगदान को बार-बार सराहते
और उनका सीना अपने-आप
देखने में 56 इंच का हो जाता
दोनों अपनी जाति की प्रगति
और कैसे हो सकती है-
के सवाल पर एक-से-एक युक्ति पेश करते
दोनों कहीं से भी
और कोई भी बात शुरू करते
तो अंत में अपनी जाति पर ही आ लटकते
कहने का मतलब यह कि
दोनों अपनी जाति के लिए
मरने-मिटने को आमादा हो सकते हैं
काश! दोनों की दिलचस्पी
दूसरी जातियों और धर्मों में भी
अपनी जाति की ही तरह होती!