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दोहावली / तुलसीदास / पृष्ठ 52

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दोहा संख्या 511 से 520


 रीझि खीझि गुरू देत सिख सखा सुसाहिब साधु।
तोरि खाइ फल होइ भलु तरू काटें अपराधु।511।


 धरनि धेनु चारितु चरन प्रजा सुबच्छ पेन्हाइ।
हाथ कछू नहिं लागिहै किएँ गोड़ की गाइ।।512।


चढें बधूरें चंग ज्यों ग्यान ज्यों सोक समाज।
करम धरम सुख संपदा त्यों जानिबे कुराज।513।


 कंटक करि करि परत गिरि साखा सहस खजूरिं ।
मरहिं कुनृप करि कुनय सों कुचालि भव भूरि।514।


काल तोपची तुपक महि दारू अनय कराल।
पाप पलीता कठिन गुरू गोला पुहुमी पाल।515।


 भूमि रूचिर रावन सभा अंगद पद महिपाल।
 धरम रामनय सीय बल अचल होेत सुभ काल।516।


प्रीति राम पद नीति रति धरम प्रतीति सुभायँ।
प्रभुहिं न प्रभुता परिहरै कबहुँ बचन मन कायँं।517।


कर के कर मन के मनहिं बचन बचन गुन जानि।
भूपहि भूलि न परिहरै बिजय बिभूति सयानि।518।


गोली बान सुमंत्र सर समुझि उलटि मन देखु।
उत्तम मध्यम नीच प्रभु बचन बिचारि बिसेषु।519।


सत्रु सयानो सलिल ज्यों राख सीस रिपु नाव।
बूड़त लखि पग डरत लखि चपरि चहूँ दिसि धाव।520।