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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-15 / दिनेश बाबा
Kavita Kosh से
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बच्चा, बूढ़ा, नवयुवक, आ नारी स्मार्ट
खूब निभाबै छै सभे, अपनों अपनों पार्ट
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एक गुना बिल्डिंग बढ़ै, चारगुना इंसान
महानगर विस्तार में, दोनो एक समान
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अनुशासित छै लोग सब, नैं कचकच नैं मार
रिक्शा लेली भी यहाँ, अक्सर लगै कतार
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कहीं खड़ा तों होय जा, क्यू के लगै कतार
जहाँ समय के माँग छै, जिनगी में रफतार
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जनसंख्या देखो यहाँ, भेलै जना पहाड़
रुकतै आबे कहाँ पर, इंसानो के बाढ़
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जनसंख्या विस्फोट में, बढ़लो गेलै भीड़
घोॅर बढ़ै रोजे मतर, कहाँ पुरै छै नीड़
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महानगर में घोॅर नैं, मिलथौं केवल फ्लैट
बोली छै खिचड़ी यहाँ, बेसी दिस या दैट
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पानी जुगना धन बहै, जिनगी छै उन्मुक्त
यहाँ तेॅ स्वेच्छाचारिता, ही लागै उपयुक्त