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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-60 / दिनेश बाबा
Kavita Kosh से
473
पारटी सुप्रिमों केरो, घी में दोनों हाथ
धन बरसै छै रात-दिन, नाम यसो के साथ
474
भारत जैन्हों देस में, वही एक छै वीर
खीचै छै गनतंत्रा के, दुःसासन रं चीर
475
सांसद लेली सर्टकट, हुवो खूब बदनाम
जीतो गुंडा बनी केॅ, मंत्राीपद संग्राम
476
मंतर, सांसद बनै के, ‘बाबा’ लड़ो चुनाव
गुंडा ही गुंडा बनी, जीतै छै अब दाव
477
खून-खराबा, गुंडई, करै राह आसान
यै इल्मो से नेतवां, मारै छै मैदान
478
करै सरारत जिन्दगी, भेलै मोॅन उदास
बितलो दिन गेलै कहाँ, छूटै दीर्घ उसांस
479
परछांहीं लम्बा लगै, निकट लगै जब सांझ
‘बाबा’ मांजो आतमा, फरू नैं लगथौं भांझ
480
राम भजै के बेर छै, संझा लगै नगीच
पापकर्ममय जिन्दगी, भेलै किचमाकीच