भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-65 / दिनेश बाबा
Kavita Kosh से
513
मतली आबै, मन घुरै, हुवै कि खट्टा खाॅव
‘बाबा’ समझो भेॅ गेलै बहू के भारी पाॅव
514
ऐ आफत सें बचै के, जानै सभे उपाय
अनचाहा जे गर्भ नै, चाहै, गोली खाय
515
लुक-पुक लुक-पुक जी करै, चुरका खट्टा खाय
‘बाबा’ बूझब करै छै, बछिया बनतै गाय
516
आरो भी कत्ते छिकै, गर्भ निरोधी स्कीम
‘बाबा’ नित खौजै नया, डाक्टर नीम हकीम
517
शीतलता चंदा रकम, सूरज जुगना ताप
‘बाबा’ रखो सुभाव में, करी संतुलन आप
518
चेतन प्राणी में सुखी, सबसें जादे भैंस
‘बाबा’ नै गोस्सा करै, नैं दिखलाबै तैस
519
सुख पावै के गुर छिकै, केवल भैंसी पास
नै हँसथौं नै बोलथौं, रहै न कभी उदास
520
चाहे कत्तो भी बजै, भैंसी आगू बीन
धुन चाहे कैन्हों रहै, नैं बदलै छै सीन