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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-77 / दिनेश बाबा
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609
प्रेमी के संवाद भी, दै छै जाय बसंत
काम समेटी घर चलौं, गुनै मनेमन कंत
610
नेकी के बदला मिलै, केॅ छै सज्जन के दण्ड
पापी होलो छै तहीं, आरो भी उदण्ड
611
फ्रंट छोड़ि हरदम यहाँ, मत अैय्यै हे नाथ
देश प्रेम सें बढ़ी केॅ, नै छै हमरो साथ
612
जा लौटी जा फ्रंट पर, दीहो अरि केॅ मात
आज तलुक भारत जहाँ, जितलो छै सब काँत
613
फ्रंटो पर रक्षा करै, सैनिक वीर सपूत
देशो के एका छिकै, तहीं बड़ा मजगूत
614
हिन्दू, मुसलिम, सिक्ख मिलि, मारै छै मैदान
देश तहीं सें एक छै, अपनों हिन्दुस्तान
615
वीरबहुल हय देश में, छै नारी सम्मान
छै धार्मिक निरपेक्षता, त्यें छै देश महान
616
नई नवेली दुलहिनी, साथें हुए अंधेर
साल में फौजी पाय जब, छुट्टी एक्के बेर