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दोहा सप्तक-22 / रंजना वर्मा

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सिर ताने तरुवर खड़े, शीश झुकाये घास।
आँधी के प्रतिरोध में, सबकी अपनी आस।।

चन्दन सी मह मह करे, चटक चाँदनी रात।
चमकीली चारो दिशा, ले उजास सौगात।।

किश्तों में रज उड़ रही, टुकड़ा टुकड़ा घाम।
चैन न दोनों को मिला, सुख न कहीं आराम।।

तिमिर घटाएँ घेरतीं, घिरे घना अंधियार।
एक दीप जल जाय तो, जाय अँधेरा हार।।

कृष्ण पक्ष शुभता लिये, आया कार्तिक मास।
तिमिर मलिनता खो रहा, ऐसा हुआ उजास।।

है त्रयोदशी तिथि लिये, आयी शुभ आरोग्य।
और कौन सी तिथि हुई, अन्य कहो इस योग्य।।

चतुर्दशी की शाम को, करिये यह उपचार।
दीपदान कर दीजिये, उठ कर यम के द्वार।।