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दोहा सप्तक-32 / रंजना वर्मा

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मादकता बरसा रहे, अमराई के बौर।
कोकिल ढूँढ़े टेरता, आज पुराने ठौर।।

सरसों पीली पड़ गयी, टेसू बहुत उदास।
बैरी हुआ बसन्त है, पिया नहीं पर पास।।

पीली सरसों सी हुई, पीली पीली देह।
क्या मैं करूँ बसन्त का, पिया नहीं जब गेह।।

खोट नहीं किस में भरी, सब हैं पाप समेत।
पाप नष्ट की कामना, चलिये शम्भु निकेत।।

राम भजन करते रहें, तज कर माया मोह।
भक्तों पर करते कृपा, चिदानन्द सन्दोह।।

क्षमा दान करिये सदा, कभी न कीजे कोह।
बन्धन में हैं बाँधते, काम क्रोध मद मोह।।

प्यार अलौकिक भावना, जीवन का यह सार।
बिना प्यार के जिंदगी, है नीरस बेकार।।