भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोहा सप्तक-32 / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।
मादकता बरसा रहे, अमराई के बौर।
कोकिल ढूँढ़े टेरता, आज पुराने ठौर।।
सरसों पीली पड़ गयी, टेसू बहुत उदास।
बैरी हुआ बसन्त है, पिया नहीं पर पास।।
पीली सरसों सी हुई, पीली पीली देह।
क्या मैं करूँ बसन्त का, पिया नहीं जब गेह।।
खोट नहीं किस में भरी, सब हैं पाप समेत।
पाप नष्ट की कामना, चलिये शम्भु निकेत।।
राम भजन करते रहें, तज कर माया मोह।
भक्तों पर करते कृपा, चिदानन्द सन्दोह।।
क्षमा दान करिये सदा, कभी न कीजे कोह।
बन्धन में हैं बाँधते, काम क्रोध मद मोह।।
प्यार अलौकिक भावना, जीवन का यह सार।
बिना प्यार के जिंदगी, है नीरस बेकार।।