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दोहा सप्तक-79 / रंजना वर्मा

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कथरी के हर छेद से, घुस घुस पड़े बयार।
छाती ढाँके खींच जो, होते पाँव उघार।।

हे गणेश शंकर सुअन, शैल सुता के लाल।
पथ बाधाएँ हरण कर, करिये सदा निहाल।।

दिनकर टपका सिंधु में, हुई सुरमई शाम।
लगा झरोखे झाँकने, शशि बालक अभिराम।।

रजनीगन्धा फूलती, फूल रहा कचनार।
मदन झकोरे दे रहा, मन मे जागा प्यार।।

जादू की जाली बुने, चतुर चन्द्रिका नार।
पत्तों से छन छन गिरे, यथा दूध की धार।।

भोर हुई पूरब दिशा, खिला आग का फूल।
परियाँ भागीं नींद की, समय हुआ प्रतिकूल।।

टूटी माला कण्ठ की, रजनी हुई उदास।
किरणें लायीं बीन कर, मोती रवि के पास।।