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दोहा सप्तक-80 / रंजना वर्मा
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रोम रोम करने लगा, भीषण हाहाकार।
आ भी जा अब साँवरे, बरसा रस की धार।।
है अमोल जग रीति यह, अनुपम विश्व प्रबन्ध।
कभी साथ रहते नहीं, सोना और सुगन्ध।।
मृत्यु - नटी नर्तन करे, सके न कोई रोक।
जो आया वो जायगा, व्यर्थ करे क्यों शोक।।
राम नाम हवि मन्त्र से, ऐसी उठी सुगन्ध।
आत्म और परमात्म का, हुआ सुखद अनुबन्ध।।
प्राणों का खग कैद है, स्वर्ण पींजरा देह।
अवसर पाते ही उड़े, बन्धन से क्या नेह।।
काव्य सुमन विकसित हुआ, उठी अलौकिक गन्ध।
तुलसी का मन झूम कर, लिखने लगा प्रबन्ध।।
पूस माघ ठिठुरन भरे, झर झर बरसे मेह।
रिस रिस टपके झोंपड़ी, थर थर काँपे देह।।