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दोहा सप्तक-99 / रंजना वर्मा
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अम्बर बरसाने लगा, जब भीषण हथियार।
धरती किसको बाँट दे, स्नेह शांति अरु प्यार।।
मन में मीठी कल्पना, आगत का विश्वास।
ले बहुएँ जलती रहें, जले ननद ना सास।।
जन्माती जो जगत को, उसका क्या सम्मान।
पग पग रहे तिरस्कृता, पुरुष करे अभिमान।।
पोस्टरों पर नाचती, नित्य नयी तस्वीर।
सुत निर्वसना देखता, ये कैसी तकदीर।।
दादा 'पोता' चाहते, 'पुत्र' पिता की चाह।
माँ की ममता रो रही, कहीं न दीखे राह।।
ध्यान रखें यह नित्य ही, कभी न हो अपकार।
दोनों हाथों बाँटिये, जन जन ममता प्यार।।
है ईनाम मिला हमे, मिला स्वजन का साथ।
निभे मित्रता ये सदा, रहे हाथ मे हाथ।।